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धन्यवाद लेखनी


शीर्षक  = धन्यवाद लेखनी



हर गुज़रता साल अपने साथ कुछ खट्टी मीठी  यादों की सौगात छोड़ जाता है , जिन्हे हम बाद में याद कर कभी मुस्कुराते है तो कभी गम गीन( उदास )हो जाते है ।


हर बीतते साल में हर एक इंसान के साथ कुछ अच्छा तो कुछ बुरा अवश्य हुआ होता, ये इंसान की प्रवर्ती है की वो हमेशा सिक्के का एक ही पहलू देखता है  और वो होता है  जो कुछ उसके साथ बुरा होता है  गुज़रे साल में और उसी के चलते वो अपना आने वाला साल भी बर्बाद कर देता है , और तो और कभी कभी तो ईश्वर, भगवान और खुदा से भी नाराज़ हो जाता है, क्यूंकि गुज़रते साल ने उसे बहुत दुख दिए होते है 

जबकि वो सिक्के का दूसरा रुख तो देखना ही नही चाहता  जिनमे उसके साथ अच्छा हुआ होता है , वो सिर्फ लकीर को पीटता रहता है  सांप के जाने के बाद बल्कि इस बात का शुक्रिया अदा नही करता की वो सांप उसे कोई नुकसान पंहुचा कर नही गया 


मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है कि लेखनी के माध्यम से अपने गुज़रे सालों के बारे में लिखने का मौका मिल रहा है , सच में वो सब यादों का झरोका ही है , और अब उन सब यादों को कलम के माध्यम से लफ्ज़ो कि माला में पिरोने का एक बेहतरीन अवसर मिला है  जिसे मैं क्या कोई भी गवाना पसंद नही करेगा


तो आइये चलते है ,मेरे जीवन में गुज़रे उन सुनहरे दिनों से आप सब को रूबरू कराने  जो अब तक मेरे सीने में यादों के संदूक में बंद थे 


मैं बताता चलू, मैं एक आशावादी लड़का हूँ, जिसके जीवन में, उसके गुज़रते साल में जो भी कुछ अच्छा या बुरा हुआ है उनमे से मैं सिर्फ अच्छी बातों को याद रखने वाला लड़का हूँ, और अपने रब का शुक्र अदा करने वालों में से हूँ, जिसने मुझे हर हाल में सब्र करने वाला बनाया  और अपनों से नीचे वालों को देख कर अपने रब का शुक्रिया अदा करने वाला बनाया जो कुछ भी मेरे पास है उन सब के लिए 



तो आइये शुरुआत करते है,2022 के उन लम्हो कि जो कुछ दिन बाद यादें बन कर यादों के संदूक में रह जाएगी, वैसे तो बहुत कुछ अच्छा और बुरा हुआ इस 2022 में मेरे साथ लेकिन मैं सबसे पहले  उन बातों का ज़िक्र करना पसंद करूंगा  जो की बेहद अच्छी थी 


जिनमे नंबर एक पर आती है 

"धन्यवाद लेखनी  "


मैं नही जानता की मुझे कब और कैसे लिखने का शोक हो गया, मुझे पहले से ही घर वालों के साथ बैठ कर टेलीविज़न पर आने वाले धारावाहिको को देखने में बहुत आंनद आता था , उस समय एकता कपूर  जो की ड्रामा इंडस्ट्री का जाना माना नाम है , कुछ बेहतर ड्रामे बनाया करती थी  जिनमे परिवार को जोड़े रहने का भी सन्देश मिलता था , जिनमे कुछ प्रसिद्ध ड्रामे निम्न है  " कहानी घर घर की, क्यूंकि सास भी कभी बहु थी, कुमकुम एक प्यारा सा बंधन, घर की लक्ष्मी बेटियां और इसी के साथ मेरा पसंदीदा ड्रामा था दिया और बाती हम जिसका एक भी एपिसोड मैंने नही छोड़ा था, उसमे जो एक लड़की का I P S  बनने का सपना वो भी ऐसे परिवार में जहाँ एक चलाक देवरानी, चलाक नन्द और देवर  और ऊपर से सोने पर सुहागा एक ऐसी सास जिसकी पूरे घर पर हुकूमत चलती थी, ऐसे में उसका पति जो की एक हलवाई था  और अपनी पत्नि के सपने को अपना समझ कर, पति पत्नि किस तरह होने चाहिए इस तरह का सन्देश देकर उसने अपने घर वालों को मना कर अपनी पत्नि को आईपीएस बना कर ही दम लिया


और एक बात जो उस ड्रामे की मुझे पसंद थी कहने को तो वो एक ड्रामा था, लेकिन कभी कभी कोई ड्रामा दिल को छू जाता है और उस ड्रामे की अच्छी बात ये थी की भले ही संध्या का पति हलवाई था और वो खुद  एक आईपीएस ऑफिसर फिर भी उन दोनों में कभी भी इस ताल मेल को लेकर कभी लड़ाई नही हुयी, क्यूंकि वो दोनों एक दुसरे से प्यार करते थे  न की वो दोनों क्या करते है इस बात से उन्हे कोई लेना देना नही था


खेर छोड़िये  मैं भी कहा की बात कहा ले गया, हाँ तो मैं क्या कह रहा था की मुझे लिखने का शोक तो अभी कुछ साल पहले ही हुआ है, लेकिन मुझे कहानियाँ और किताबें पढ़ने का बहुत शोक था , जहाँ मेरे साथ के बच्चे जो भी एक दो रूपये पॉकेट मनी मिलती थी उससे कुछ खाने पीने का खरीदते थे , लेकिन मैं उन पैसों को जोड़ कर कभी चम्पक, तो कभी कहानियो की किताबें खरीद कर ले आता  और कभी कभी किराय पर भी कॉमिक्स खरीद कर लाता और पढता उस समय एक बहुत ही मशहूर किताब हमारे इर्द गिर्द घूमती थी जिसे शायद हर 80, 90 के लोग बखूबी वाकिफ होंगे उसका नाम था  " मेहकता आँचल " जिसके अंदर एक से एक बढ़कर कहानी, चुटकुले, घरेलु नुस्खे और रसोई की टिप्स और कुछ नये नये व्यंजन  अपने अंदर समेटे वो एक तरह का अलादीन का चिराग थी, जो की सहेली सहेली खेलती रहती थी, क्यूंकि उस समय उसका मूल्य इतना हुआ करता था की एक मध्यम परिवार मैं रहने वाली लड़की हो या लड़का अकेले खरीद नही पाता इसलिए सब पैसे इकठ्ठा करते और उसके बाद वो घरो घरो के चककर लगाती और कुछ दिन हर घर ठहरती, जिसको पढ़ने के चककर में लड़के और लड़कियों को अपनी माँ से डांट खाना पड़ जाती और कभी कभी माँ का गुस्सा सातवे आसमान पर चढ़ जाने पर मेहकता आँचल की आहुति जलते चूल्हे में दे दी जाती और उसके बाद माँ का यही डायलॉग होता " न रहेगा बास और न बजेगी बांसूरी "


जब देखो इस किताब में ही घुसे रहते है , और अब उसकी जगह मोबाइल ने ले ली है, माँ का बस चले तो मोबाइल की भी आहुति दे दे लेकिन वो महंगा होता है इसलिए  चाह कर भी नही दे सकती और  अगर उसकी आहुति देदी तो फिर  मामा और मासी से बात कैसे होगी इसलिए  माँ अपना गुस्सा सिर्फ मार तक ही सीमित रख मोबाइल लोटा देती है, माँ कभी नही बदलती



हाँ तो क्या बात चल रही थी , मेरे लेखन के सफऱ के बारे में जैसा मैंने बताया की मैंने लिखना अभी शुरू किया है  क्यूंकि मुझे किताबें पढ़ना और ड्रामे देखना बेहद पसंद है  और साथ में हॉरर मूवीज भी  जिसके चलते मेरा भी मन किया क्यू न मैं भी अपने मन में उठ रहे विचारों को कलम की मदद से कागज पर उतारू


कुछ लिखू  अपने जज़्बात कहानी के माध्यम से दूसरों तक पंहुचाऊ, इसलिए साल 2018 के आख़री दिनों में मैंने एक डायरी और पेन लिया, अब परेशानी ये थी की क्या और किस बारे में लिखा जाए, उसी दौरान रेडियो पर एक एसिड पीड़िता की खबर चल रही थी, उसके बारे में सुनते ही मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी  और मैंने अपने विचारों को कलम की सहायता से कागज पर उतारने की कोशिश की जो पहले तो मुश्किल था लेकिन बाद में धीरे धीरे  सरल होता गया लेकिन एक समस्या थी  की अपने लेखन को किसको दिखाऊ , नही पता सही भी है या नही, लोग पसंद करेंगे भी या नही


इन सब सवालों के बावज़ूद मैं लिखता ही गया , जब भी समय मिलता साथ ही साथ  उसे कही पब्लिश करने की भी सोचता पर मेरी राइटिंग अच्छी न होने की वजह से मैंने कभी उसे पब्लिश करने की नही सोची 


लेकिन फिर भी कही न कही मेरे दिल में रहती की क्यू न इसे किसी को तो दिखाया जाए, कही तो कोई होगा जो मेरे लेखन के हुनर को ज़िंदा रखने में मेरी सहायता करेगा, उसी के चलते  मैंने सोशल मीडिया का सहारा लिया, काफ़ी नाकाम कोशिशे की, बहुत सारे ग्रुप ज्वाइन किये लेकिन कुछ फायदा न हुआ, फिर कहते है  न  कोशिश करने वाले की कभी हार नही होती एक दिन जब मैंने फेसबुक खोली  एक ग्रुप पर नताश सर का मैसेज देखा  जो की लेखनी के बारे में था


और उनसे बात करने पर एक उम्मीद की किरण जगी  जैसा जैसा उन्होंने बताया उन्ही के पदचिन्हो पर चलते हुए, अपनी पहली  कहानी  " The photographer " पब्लिश की जिस पर आने वाले लाइक और प्यारे प्यारे कमैंट्स ने मुझे और लिखने का हौसला दिया


जिसके बाद लेखनी पर मेरा सफऱ शुरू हो गया और एक के बाद एक दैनिक प्रतियोगिता में अपनी रचनाएँ डाल कर कभी खुद को विजयता बनता देखा तो कभी दूसरों के विजयता बनने पर उनको बधाई दी

बीते इस साल में लेखनी पर लिख कर लेखन के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला, उम्मीद नही थी की इतना अच्छा कर पाउँगा लेकिन लेखनी और उससे जुड़े समस्त लेखकों के सहयोग और मेरी रचनाएँ पढ़ कर उन पर कमैंट्स और लाइक ने मेरे उत्साह को हर दम बढ़ाये रखा जिसके चलते अब तक 200 से ज्यादा कहानिया और दो धारावाहिक लिख डाले जिन्हे देख कर यकीन नही होता की ये सब मैंने ही लिखें है , और जिसको लिखने में मेरा सहयोग लेखनी और उसके सदस्यों ने हर पल दिया


2022 की एक अच्छी यादों में से सबसे पहली याद गार लम्हा मेरे लिए लेखनी से जुड़ पाना ही है, क्यूंकि अगर लेखनी से नही जुड़ता तो शायद  अपने अंदर छिपे लिखने को हुनर को पहचान नही पाता


इसलिए तेह दिल से

धन्यवाद लेखनी 


ऐसे ही बीते सालों के यादगार लम्हो को मेरी ज़ुबानी सुनने और पढ़ने के लिए जुड़े रहे मेरे साथ  जब तक के लिए अलविदा

जहाँ रहे, जैसे भी रहे हमेशा हस्ते मुस्कुराते रहे यही सुखी जीवन का मूलमंत्र है


यादों के झरोखे हेतु 










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7 Comments

Sachin dev

06-Dec-2022 06:04 PM

Well done

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Khan

22-Nov-2022 11:23 PM

बहुत ही सुन्दर रचना 💐🌸

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Gunjan Kamal

22-Nov-2022 08:57 AM

लाजवाब प्रस्तुति 👌

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